संदेश

पंचशील

  पंचशील बौद्ध धर्म की मूल आचार संहिता है जिसको बौद्ध उपासक एवं उपासिकाओं के लिये पालन करना आवश्यक माना गया है। हिन्दी में इसका भाव निम्नवत है- हिंसा न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, झूठ न बोलना, नशा न करना। बौद्ध धर्म के पांच अतिविशिष्ट वचन हैं जिन्हें पञ्चशील कहा जाता है और इन्हें हर गृहस्थ इन्सान के लिए बनाया गया है। 1. पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी मैं जीव हत्या से विरत (दूर) रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ। 2. अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी जो वस्तुएं मुझे दी नहीं गयी हैं उन्हें लेने से मैं विरत रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ। 3. कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी काम (रति क्रिया) में मिथ्याचार करने से मैं विरत रहूँगा ऐसा व्रत लेता हूँ। 4. मुसावादा वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी झूठ बोलने से मैं विरत रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ। 5. सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी मादक द्रव्यों के सेवन से मैं विरत रहूँगा, ऐसा वचन लेता हूँ।        वन्दना (हिन्दी अर्थ सहित) नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स । नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स । नमो तस्स भ

बौद्ध धर्म की १० पारमिया / पारमिता

बौद्ध धर्म मे १० पारमी / पारमिता बताई गयी है, जिनका बोधिसत्व पालन करते है या जिनका पालन करके हम अपने आध्यात्मिक जीवन मे प्रगति कर सकते है | 1. दान पारमि : उदारता, स्वयं का न्योछावर होना दूसरों के प्रति 2. शील पारमि : सदाचार, नैतिकता, उचित आचरण 3. निक्कम्मा पारमि : त्याग 4. पन्ना/ प्रज्ञा पारमि : ज्ञान, विवेक 5. विरिया / वीर्य पारमि : ऊर्जा, परिश्रम, जोश, प्रयास 6. खान्ति पारमि : धैर्य, सहनशीलता, पूर्वाग्रहमुक्त, स्वीकृति, धीरज 7. सका पारमि : सच्चाई, ईमानदारी 8. आधीथाना पारमि : संकल्प, निच्छय 9. मेत्ता पारमि : सद्भावना, मित्रता, प्रेम-कृपा १०. उपेक्खा पारमि : समभाव, शांति जातक कथावों मे सिद्धार्थ बुद्ध के अनेक पिछले जन्मों की कहानिया है जिसमे उन्होंने इन पारमियों को किस प्रकार पूरा किया है इसका विवेचन किया है | हमें भी इन परमियों को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए जिससे हम इस जीवन को सफल बना सकते है |

धम्मपद १०२ , १०३ कुण्डलकेसीथेरी वठु

थेरी कुण्डलकेसी की कहानी | जब बुद्ध जेतवन मठ मे ठहरे हुवे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरी कुण्डलकेसी के संदर्भ मे कहा | कुण्डलकेसी राजगृह नगर के अमिर आदमी की बेटी थी | उसने जीवन समाज से अलग रहकर बिताया था | उन दिनों माता पिता बेटियों को बुरे संगती से बचने के लिए समाज से अलग रखते थे | वह उसका विवाह अच्छे और अमिर लडके से लगाना चाहते थे | लेकिन एक दिन , उसने देखा के एक चोर को नगर से ले जाया जा रहा था उसे मार देने के लिए और वह उसके प्रेम मे पड़ गयी | वह चोर से शादी करने के जिद पर तुली रही | माता पिता न चाहते हुवे भी राजी हो गए क्योंकि उनको अपने लड़की की जान की परवाह थी |  उसके माता पिता को उस चोर को छुड़ाने के लिए पैसे देने पड़े और उन्होंने उसकी शादी चोर से कर दी | हालाँकि उसने पति से जी जान से प्रेम किया , उसका पति चोर होने के कारण , केवल उसके संपत्ति और गहनों मे रूचि रखता था | एक दिन उसने सारे गहने उतारने को राजी कर लिया और उसे पर्वत पर ले गया यह कहकर के वह पर्वत के रक्षणकर्ता देवता का शुक्रिया करना है जिसने उसे मरने से बचाया था | कुण्डलकेसी उसके पति के साथ गयी , लेकिन जब वे लक्ष्य पे पह

धम्मपद ३१८ , ३१९ तिथियासवका वठु

गैर बौद्ध सन्यासियों के अनुयायियों की कहानी | जब बुद्ध निर्गोदरम मठ रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद तिथि के अनुयायियों के संदर्भ मे कहा | तिथि के अनुयायी नही चाहते थे के उनके बच्चे बुद्ध के अनुयायियों के बच्चों के साथ मिले | वह अक्सर अपने बच्चों से कहते , " जेतवन मठ मे न जावो , साक्य वंश के भिक्खुवों का आदर मत करो | " एक अवसर पर , तिथि के बच्चे बौद्ध बच्चे के साथ जेतवना मठ के दरवाज़े के बाहर खेल रहे थे , उनको बहुत प्यास लगी | जिस प्रकार तिथि के अनुयायियों ने अपने बच्चों से कहा था के जेतवन मठ मे प्रवेश नही करना है , तो उन्होंने बौद्ध बच्चों से अंदर जाकर पानी लाने को कहा | नन्हा बौद्ध बच्चा बुद्ध को आदर प्रकट करने गया जब उसने पानी पी लिया था , और उसने उसके मित्रों के बारे मे बताया जिनके माता पितावों ने मठ मे आने से मना किया था | बुद्ध ने तब बौध्द बच्चे से कहा के वह उन बच्चों को अंदर आकर पानी पिने के लिए कहे | जब वे बच्चे आये , बुद्ध ने उनको उनके मुताबिक उपदेश किया | इससे , उन बच्चों का तीन रत्नों ( बुद्ध , धम्म और संघ ) मे विश्वास हुवा | जब बच्चे घर गए , उन्होंने उनके जेतवन मठ

धम्मपद २३९ अन्नताराब्राह्मण वठु , धम्मपद २४२ , २४३ अन्नताराकुलपुत्त वठु

एक ब्राह्मण की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद एक ब्राह्मण के संदर्भ में कहा |  एक समय , ब्राह्मण ने भिक्खुवों के समूह को देखा जो अपने पोशाक को उलटफेर कर रहे थे जैसे ही वे नगर मे भिक्षा मांगने जाने वाले थे | उसने देखा के कुछ भिक्खुवों के पोशाक ज़मीन को लगे और घास के नमी से गिले हो गए | तो उसने उस जगह को साफ किया | अगले दिन उसने देखा के जैसे उन भिक्खुवों के पोशाक खाली ज़मीन को लगे वे मेले हो गए | इसलिये उसने उस जगह को रेत से ढक दिया | फिर उसने देखा के भिक्खु धुप से पसीने से गीले होते और बारिश आने पर भीग जाते | आखिरकार उसने भिक्खुवों के लिए विश्राम गृह बनाया जहा वे नगर मे भिक्षा मांगने के पहले जमते |  जब वास्तु तैयार हुवी , उसने भिक्खु और बुद्ध को खाना खाने बुलाया | ब्राह्मण ने बुद्ध को बताया के उसने किस प्रकार थोड़ा थोड़ा करके इस विश्राम गृह को बनाया | उसे बुद्ध ने कहा , " ओ ब्राह्मण ! , होशियार व्यक्ति पुण्य के काम थोड़ा थोड़ा करके पूरा करते है , और क्रम और नियमित रूप से वे अपने नैतिक मैल को निकाल देते है | " बुद्ध ने तब यह धम्मपद कहा |  &qu

धम्मपद १३१ , १३२ संबहुला कुमारका वठु , धम्मपद १६४ कालाथेरा वठु

अनेक युवाओं की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद अनेक युवाओं के संदर्भ मे कहा |  एक समय , बुद्ध भिक्षा के लिए सावत्थी नगर मे निकल पड़े थे तब वह उनको अनेक लड़के नजर आये जो साप को लकड़ी से पिट रहे थे | पूछने पर , लड़कों ने कहा वे साप को इसलिए मार रहे है ताकी उनको डर है के वह उनको काट लेगा | उनको बुद्ध ने कहा , " अगर तुम चाहते हो के खुद को हानि न हो , तुमने भी दूसरों को हानि नही पहुँचानी चाहिए , अगर तुम दूसरों को हानि पहुँचाते हो , तुम लोगों को अगले अस्तित्व मे सुख नही मिल सकेगा | " तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " जो खुद के ख़ुशी के लिए दूसरों को दबाता है , उसको जो खुद भी ख़ुशी की आकांशा रखता है , अगले अस्तित्व मे खुश नही रह सकेगा  | " धम्मपद १६४ कालाथेरा वठु  मुर्ख मनुष्य , जो उसके गलत दृषिकोण से , आदर करने योग्य कुलीन लोगों की जो धम्म के अनुसार जीते है उनकी घृणा करते है वे बाम्बू के तरह होते है जिसका फल खुद के विनाश का कारण बनता है |  थेरा काला की कहानी |  बुद्ध जब जेतवन मठ मे रह रहे थे तब यह धम्मपद उन्होंने थेरा काला के संदर्भ

धम्मपद २१२ अन्नताराकुटुम्बिका वठु , धम्मपद ९० जीवकपन्हा वठु

एक अमिर गृहस्थ की कहानी |  जब बुद्ध जेतवन मठ मे रह रहे थे तब उन्होंने यह धम्मपद एक अमिर ग्रहस्थ के संधर्भ मे कहा जिसने पुत्र खोया था |  एक समय , एक गृहस्थ पुत्र के मृत्यु के कारन बहुत तनाव मे था | वह लगातार कब्रिस्थान जाकर बहुत रोया | एक बार बहुत सवेरे , बुद्ध ने एक अमिर आदमी को अंतदृष्टि से देखा | इसिलिये भिक्खु को साथ लेकर वे उस आदमी के घर जा पहुँचे | वहा भगवान बुद्ध ने उससे पूछा के वह इतना दुःखी क्यों है | तब आदमी ने बुद्ध को उसके पुत्र के बारे मे बताया जो मर गया था और उससे हो रहे दुःख और कष्ट के बारे मे बताया | उससे बुद्ध ने कहा , " मेरे अनुयायी , मृत्यु केवल एक जगह पर नही होती | सभी सजीव जो जन्मे है उनको एक वक्त मरना ही है | वास्तव मे जीवन मृत्यु से समाप्त होता  है | तुमने हमेशा स्मरण रखना चाहिए के जीवन मृत्यु से ख़तम हो जाता है | केवल यह कल्पना न करो के सिर्फ तुम्हारा प्रिय पुत्र मृत्यु के अधीन है | इतने तणावग्रस्थ मत हो , न ही हिलो | दुःख और भय स्नेह से उत्पन्न होते है |  तब बुद्ध ने यह धम्मपद कहा |  " स्नेह खिन्नता उत्पन्न करता है  , स्नेह भय उत्पन्न करता है  |