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धम्मपद १०८ सरिपुत्तत्थेरासा ब्राह्मणा वठु , धम्मपद ५४, ५५ आनन्दत्थेरापन्हा वठु

सारिपुत्त के मित्र की कहानी |  जब भगवान बुद्ध वेळुवन मठ मे ठहरे हुवे थे | उन्होंने यह धम्मपद सारिपुत्त के मित्र के संदर्भ मे कही |  एक बार थेरा सारिपुत्त ने अपने ब्राह्मण मित्र से पूछा के वह कोई पुण्यवान काम कर रहा है या नहीं ! मित्र ने कहा के वह पिछले साल भर बहुत मात्रा में बलि चढ़ा रहा था , जिससे उसे अगले जन्म में ब्रह्मा लोक मिल सके | तब सारिपुत्त ने उसके मित्र को बताया के उसके गुरुवों ने उसको झूठे आशावो  पर लगाया है और वे स्वयं नहीं जानते के ब्रह्म लोक कैसे जा सकते है | तब सारिपुत्त ने उसे भगवान बुद्ध के पास लाया | बुद्ध ने उसको ब्रह्मा लोक का रास्ता बताया |  बुद्ध ने सारिपुत्त के मित्र से कहा "ब्राह्मण , जो महान लोगो को केवल एक क्षण के लिए पूजता है वह अनेक बलि चढ़ाने से जादा हितकारी है , कम या जादा , पूरे साल भर | " तब भगवान बुद्ध ने धम्मपद कहा |  " इस दुनिया में कोई बलि चढ़ा के प्रसाद दे सकता है , कम या जादा , पूरे साल भर , पुण्य कमाने के चाहत में , इतना सारा प्रसाद एक चौथाई पुण्य के बराबर भी नहीं है जो कुलीन प्रज्ञावान व्यक्ति जो भले राह पे चलता है उसकी पूजा

धम्मपद ७७ अस्सजिपुनब्बसुका वठु

भिक्खु अस्सजी और पुनब्बसुका की कहानी | जेतवन मठ में जब भगवान बुद्ध रुके हुवे थे तब उन्होंने यह धम्मपद भिक्खु अस्सजी और पुनब्बसुका के संदर्भ में कही | भिक्खु अस्सजी और पुनब्बसुका उनके पांच सो शिष्य भिक्खुवों के साथ कीटगिरी गांव में रह रहे थे |  तब उन्होंने फूल पौधे और फल वृक्ष लगाकर आमदनी शुरू की | जो की भिक्खु के लिए बनाये गये मुलभूत नियमों का उल्लंघन कर रहा था | जब बुद्ध को पता चला तब उन्होंने अपने दो प्रमुख भिक्खु सारिपुत्त और मोग्गल्लाना को वहा जाकर उनको दुराचार रोकने को कहा |  बुद्ध ने अपने प्रमुख भिक्खु शिष्यों से कहा " उन दो भिक्खुवों को उपासको की श्रध्दा और उदारता की हानि अपने दुराचार से न करने  को कहे  , अगर कोई मानने से इनकार करे तो उनको मठ से बाहर करे , मैने जो कहा वैसे करने में संकोच न करे , केवल मुर्ख व्यक्तियों को ही अच्छी सलाह और बुराई से मना करना पसंद नहीं आता  | " तब भगवान् बुद्ध ने धम्मपद कहा  | " प्रज्ञामय व्यक्ति ने दुसरो को सलाह देनी चाहिए , उसने दुसरो को बुरा करने से रोकने के लिए चेतावनी और सलाह देनी चाहिए , ऐसा व्यक्ति अच्छे लोगों का प्रिय बनता है ,

धम्मपद ५ कलयखिनी वठु

कलयखिनी  की कहानी |  यह कहानी तब की है जब भगवान बुद्ध जेतवन मठ मे ठहरे हुवे थे | यह धम्मपद भगवान बुद्ध ने उस बांझ स्त्री के संदर्भ मे कहा जिसकी एक दूसरी स्त्री से शत्रुता अनेक जम्नो तक रही |  तब एक श्रावस्ती नगर में एक गृहस्त था जिसकी पत्नी बांझ थी | तब उसने दूसरे स्त्री से शादी की |  शत्रुता तब शुरू हुवी जब बड़ी पत्नी ने उस नयी पत्नी का गर्भ गिराया | जो बाद में संतान को जन्म देते वक़्त मर गयी | बाद के जन्म में वो दोनों मुर्गी और बिल्ली बनी | ऐसे शत्रुता निभाते हुवे वे दोनों उसके अगले जन्मो में कबूतर और तेंदुवा बनी | वे एक दूसरे के बच्चे जन्म लेकर मार डालते थे क्योंकि उनके मन में प्रति शोध की भावना चलती आ रही थी |  फिर बाद के जन्म में उसने श्रावस्ती के कुलीन घर में बेटी के तोर पर जन्म लिया | और दूसरी ने नरभक्षक काली के नाम से जन्म लिया | नरभक्षिणी कलयखिनी उस स्त्री और उसके बच्चे को मार डालने पर तुली हुवी थी | तब उस कुलीन स्त्री को पता चला के बुद्ध भगवान पास के श्रावस्ती नगर में मठ में बुद्ध धम्म का प्रवचन कर रहे है | तब वह कुलीन स्त्री बच्चे को लेकर भगवान बुद्ध के पास खुद का और