सम्यक कम्मा / कर्म
बुद्ध धर्म में अष्टांग मार्ग में से एक नियम ' सम्यक कर्म ' नाम से जाना जाता है , जो बहुत महत्त्वपूर्ण नियम है। आम तोर पर खुद को सन्यासी और धार्मिक बताने वाले व्यक्ति कहते फिरते है की जीवन मोह माया है , सब कुछ अनर्थ है.…इत्यदि इत्यादि। फिर भी उनकी तीव्र चाह होती के जादा से जादा अमिर लोग उनके अनुयायी बने | यह समाज को और ख़ास तोर पर नवयुवको को गुमराह करने का काम है। युवक आलसी भी बन सकते है। सम्यक कर्म और सम्यक आजिविका का मतलब है की अपनी उप जीविका का साधन सन्मार्ग होना चाहिए । उपजीविका का साधन किसी के हत्या या बुराई से सबंधित न हो । कर्म कल्याणकारी होना चाहिए । चोरी , डकैती , जहर बेचना , हत्या करना , शस्त्र , शराब बेचने जैसे फर्जी काम निषिद्ध है। कर्म का जीवन में बड़ा महत्व है इससे ही जीवन की गती निर्धारित होती है । भगवान बुद्ध ने लोगो की सेवा करने वाले कुछ भले चिकिस्तक और अन्य कल्याणकारी लोगो को दीक्षा देने के बाद भिक्षु बनने से मना कर दिया था ताकि वह समाज की सेवा करते रहे। भगवान बुद्ध कहते है। " जब प्रयास करना चाहिए , तब प्रयास नहीं करता , जवान और पुष्ट होकर भी निष्क्रिय